"एक किलोमीटर के दायरे में दूसरा स्कूल नहीं," सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, हज़ारों टीचरों और बच्चों को मिली बड़ी राहत
उत्तर प्रदेश सरकार की'स्कूल विलय नीति' (Samviliyan Niti),जिसके तहत कम छात्र संख्या वाले प्राइमरी स्कूलों को पास के ही दूसरे स्कूलों में मिलाया (merge)जा रहा था,उस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बड़ा झटका दिया है।
कोर्ट ने फ़िलहाल इस विलय प्रक्रिया पर रोक लगा दी है,जिससे सीतापुर समेत पूरे प्रदेश के हज़ारों शिक्षकों और लाखों बच्चों के भविष्य से जुड़ा एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।क्या है यह पूरा मामला और क्यों लगी रोक?उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नीति बनाई थी जिसके तहत अगर शहरी इलाक़ों में एक किलोमीटर और ग्रामीण इलाक़ों में तीन किलोमीटर के दायरे में एक से ज़्यादा प्राइमरी स्कूल हैं,तो कम बच्चों वाले स्कूल को बंद करके उसके छात्रों और शिक्षकों को पास के बड़े स्कूल में शिफ़्ट कर दिया जाएगा। इस प्रक्रिया को’संविलियन’या विलय कहा जाता है।इसी नीति के तहत सीतापुर ज़िले में कई स्कूलों को पास के स्कूलों में विलय करने का आदेश जारी कर दिया गया था। सरकार का तर्क था कि इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा और शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी।लेकिन इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कई शिक्षक हाईकोर्ट पहुँच गए। उनकी दलील थी कि सरकार का यह फ़ैसला’शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ (Right to Education Act)का सीधा-सीधा उल्लंघन है।क्या कहता है’शिक्षा का अधिकार क़ानून’?शिक्षा का अधिकार क़ानून-2009साफ़ तौर पर कहता है कि हर बच्चे के घर केएक किलोमीटर के दायरे में एक प्राइमरी स्कूलहोना ही चाहिए ताकि छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ने के लिए ज़्यादा दूर न जाना पड़े।याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि सरकार की विलय नीति इस क़ानून की मूल भावना के ही ख़िलाफ़ है।
जब आप एक स्कूल बंद करके उसे दूसरे स्कूल में मिला देंगे,तो उन बच्चों का क्या होगा जिनके घर के पास का इकलौता स्कूल ही बंद हो जाएगा?उन्हें पढ़ने के लिए एक किलोमीटर से ज़्यादा दूर जाना पड़ेगा,जो ग़ैर-क़ानूनी है।हाईकोर्ट ने सरकार से माँगा जवाबजस्टिस विवेक चौधरी की बेंच ने इन दलीलों को बहुत गंभीरता से लिया। कोर्ट ने माना कि सरकार का यह क़दम पहली नज़र में शिक्षा के अधिकार क़ानून का उल्लंघन लगता है।कोर्ट ने इस विलय प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए राज्य सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग को चार हफ़्ते के अंदर अपना जवाबદાખલकरने का आदेश दियाहैं। सरकार को अब कोर्ट में यह साबित करना होगा कि उनकी यह नीति बच्चों के शिक्षा के अधिकार को कैसे प्रभावित नहीं करती है।यह फ़ैसला उन हज़ारों छोटे स्कूलों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आया है,जिन पर विलय की तलवार लटक रही थी। अब सबकी निगाहें सरकार के जवाब और कोर्ट के अंतिम फ़ैसले पर टिकी हैं।
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