परिषदीय स्कूलों के मर्जर के खिलाफ दाखिल हुई एक और याचिका Case against school merging

परिषदीय स्कूलों के मर्जर के खिलाफ दाखिल हुई एक और  याचिका

Case against school merging


पीलीभीत निवासी याची बोले-विलय से मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा प्रभावित, घर के पास नहीं मिल पाएगी शिक्षा

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रदेश सरकार की ओर से प्राथमिक विद्यालयों के मामला 1 विलय को लेकर 16 जून 2025 को जारी किए गए आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका पीलीभीत के बिलसंडा ब्लॉक के चांदपुर गांव निवासी सुभाष, यशपाल यादव और अत्येंद्र कुमार ने दाखिल की है। इनका कहना है कि यह आदेश न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की पहुंच से शिक्षा को दूर करता है।

Case against school merging
Case against school merging


सरकार के इस आदेश के तहत जिन प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की  संख्या कम है, उन्हें पास के उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मिला दिया जाएगा। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह नीति मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की भावना के विपरीत है। इससे छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को उनके निवास स्थान के पास गुणवत्ता युक्त शिक्षा नहीं मिल पाएगी।


 याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकार ने आदेश में अधिकारियों को अत्यधिक और मनमानी शक्तियां सौंप दी हैं। इससे वे बिना किसी स्पष्ट मापदंड के स्कूलों के विलय का निर्णय ले सकते हैं।


याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चांदपुर गांव के बच्चों को अब एक किलोमीटर से भी अधिक दूर स्थित स्कूल में जाना पड़ेगा, जबकि वहां न तो पर्याप्त कक्षाएं हैं और न ही बुनियादी सुविधाएं।


अदालत से अनुरोध किया गया है कि सरकार के आदेश को रद्द किया जाए। साथ ही बेसिक शिक्षा अधिकारी के 25 जून 2025 के जारी आदेश को निरस्त करें। चांदपुर जैसे गांवों के बच्चों को उनके स्थानीय स्कूलों में ही पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दें। 


इस मामले में अपर मुख्य सचिव (बेसिक शिक्षा), महानिदेशक (स्कूल शिक्षा), शिक्षा निदेशक (बेसिक), क्षेत्रीय सहायक शिक्षा निदेशक (बरेली मंडल), डीएम, मुख्य विकास अधिकारी, बेसिक शिक्षा अधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी (बिलसंडा) पीलीभीत को पक्षकार बनाया गया है।


याचिका दाखिल हो चुकी है। केस स्टेटस पर सुनवाई की तिथि अभी दिखाई नहीं पड़ रही है। संभावना है कि दो या तीन दिन में सुनवाई हो सकती है। -कुष्माण्डेय शाही, परिषदीय अधिवक्ता

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