बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बीए के छात्र रौनक मिश्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजय भनोट ने सभी विश्वविद्यालयों को छात्रों के सुधार व पुनर्वास के लिए जारी अदालत के निर्देश और यूजीसी की गाइडलाइन लागू करने पर विस्तृत आदेश पारित किया है। रौनक मिश्रा सहित 6 छात्रों को बीएचयू के रजिस्ट्रार ने 8 अक्टूबर 2022 के आदेश से निलंबित कर दिया था । उनके परीक्षा में शामिल होने पर भी रोक लगा दी थी। इन सभी पर एक छात्र महेंद्र पटेल से मारपीट में शामिल होने का आरोप है। याची की निलंबन वापस लेने की अर्जी भी विश्वविद्यालय में खारिज कर दी । उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर निलंबन आदेश रद्द करने की मांग की।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि उसे सुधार का एक मौका मिलना चाहिए जबकि विश्वविद्यालय ने याची को सुधार का कोई अवसर दिए बिना सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई की है । ऐसा करके इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा नारायण मिश्रा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य मुकदमों में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया। जिससे छात्र का न सिर्फ पूरा भविष्य नष्ट हो गया बल्कि कानून के राज पर भी चोट की है। विश्वविद्यालय ने कार्रवाई करते समय नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया तथा छात्र को उसकी गलती से ज्यादा दंड दिया गया है।
जबकि बीएचयू के अधिवक्ता विमलेंदु त्रिपाठी का कहना था कि विश्वविद्यालय अदालत के आदेश और यूजीसी की गाइडलाइन का पालन करने के लिए बाध्य है। छात्र को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई है। वहीं यूजीसी के अधिवक्ता रिजवान अली अख्तर का कहना था कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में यूजीसी ने 12 अप्रैल 2023 को गाइडलाइन जारी कर दी है।
उन्होंने यूजीसी द्वारा जारी गाइडलाइन की प्रति कोर्ट में दाखिल की तथा बताया कि यूजीसी ने बीएचयू के साथ मीटिंग कर छात्रों के सुधार की योजना लागू करने और इसे विश्वविद्यालय के परिनियमों में शामिल करने पर चर्चा की है। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि याची छात्र के विरुद्ध कार्रवाई करने में विश्वविद्यालय ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया है। कोर्ट ने याची रौनक मिश्रा के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई को रद्द करते हुए उसे नियमित छात्र के रूप में विश्वविद्यालय जाने का निर्देश दिया है।
सरकार और विश्वविद्यालय को निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, यूजीसी और विश्वविद्यालय को निर्देश दिया है कि सरकार अपने क्षेत्राधिकार वाले विश्वविद्यालयों में यूजीसी की गाइडलाइन लागू करवाए तथा सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इसे यूजीसी के साथ मिलकर लागू किया जाए। गाइडलाइन के क्रियान्वयन की निगरानी की व्यवस्था कानून के अनुसार सुनिश्चित की जाए। इसके लिए नियमित रूप से कार्यशालाओं व्याख्यानो का आयोजन किया जाए । तथा सभी विश्वविद्यालयों के अनुभवों को साझा करने के लिए एक लाइब्रेरी स्थापित की जाए ताकि विश्वविद्यालय एक दूसरे के अनुभवों का लाभ लेकर अपने कार्यक्रम को और उन्नत बना सकें। कोर्ट ने कहा की सजा ऐसी होनी चाहिए जिससे संस्था के अनुशासन और छात्र में सुधार के बीच संतुलन बना रहे।