कर्मचारी को सीधे उच्च अधिकारियों को अभ्यावेदन भेजने के कारण बर्खास्त नहीं किया जा सकता: न्यायालय
Employee cannot be dismissed for sending representation directly to higher authorities: Court
नयी दिल्ली, 17 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को केवल इसलिए बर्खास्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने उचित माध्यम को दरकिनार कर सीधे वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष अपनी बात रखी थी।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति पी. के. मिश्रा की पीठ ने जिला न्यायपालिका के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
SC ORDER FOR EMPLOYEES |
छत्रपाल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल और मुख्यमंत्री सहित उत्तर प्रदेश सरकार के अन्य अधिकारियों को सीधे अभ्यावेदन भेजने के कारण बर्खास्त कर दिया गया था।
पीठ ने कहा, ''एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, जब आर्थिक तंगी में होता है तो वह सीधे वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष अपनी बात रख सकता है, लेकिन यह अपने आप में बड़े कदाचार की श्रेणी में नहीं आता है जिसके लिए उसे सेवा से बर्खास्त किये जाने की सजा दी जाये।''
अपीलकर्ता ने बरेली जिला अदालत के अन्य कर्मचारियों के उदाहरणों का हवाला दिया है जिन्होंने सीधे वरिष्ठ अधिकारियों को अभ्यावेदन भेजा था लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए छत्रपाल को बहाल करने का आदेश दिया।
उच्च न्यायालय ने 2019 में बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली उनकी रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
छत्रपाल को बरेली जिला न्यायालय में अर्दली, चतुर्थ श्रेणी के पद पर स्थायी तौर पर नियुक्त किया गया था।
बाद में उनका तबादला कर दिया गया और उन्हें बरेली की एक बाहरी अदालत नजारत शाखा में 'प्रोसेस सर्वर' के रूप में तैनात कर दिया गया। हालांकि वह नजारत शाखा में काम करने लगे, लेकिन उन्हें एक अर्दली का पारिश्रमिक दिया जा रहा था।
नजारत शाखा, अदालतों द्वारा जारी किए गए समन, नोटिस, वारंट आदि जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं के वितरण और निष्पादन के लिए जिम्मेदार प्रक्रिया सेवा एजेंसी है।
वरिष्ठ अधिकारियों को कई अभ्यावेदन देने के बाद, उन्हें जून 2003 में निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई थी।